बीजेपी क्यों दरकिनार कर रही है अपने लौह पुरुष को ???
कहा जाता है जब देश की राजनीति को गर्म करना हो तो बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति को हवा दे दो, पुरे देश की राजनीति खुद ही गर्म हो जीएगी और शायद बीजेपी भी इस बात को बखूबी जानती है । क्योंकि बीजेपी ने इस बार राष्ट्रपत्ति के लिए एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान मे उतारा है जिसके बारे मे शायद किसी पार्टी ने सोंचा भी नहीं होगा ।
पिछले कई दिनों से बीजेपी के राष्ट्रपत्ति के उम्मीदवार के रुप मे बीजेपी के लौह पुरुष लाल कृष्ण आडवानी को देखा जा रहा था लेकिन बीजेपी ने बिहार के त्तकालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद को अपने राष्ट्रपत्ति उम्मीदवार की घोषणा कर विपक्षियों और शायद लाल कृष्ण आडवाणी को भी जोड़दार झटका दिया है ।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी से पुर्व लालकृष्ण आडवानी को प्रधान मंत्री के रुप मे देखा जा रहा था लेकिन उनके नाम को दरकिनार करके नरेन्द्र मोदी को प्रधान मंत्री बनाया गया और अब जब लालकृष्ण आडवानी को देश की जनता राष्ट्रपत्ति के रुप मे देख रही थी उनके नाम को दरकिनार कर के रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा कर दी गई जिससे शायद लालकृष्ण आडवानी को भी जोडदार झटका भी लगा हो ।
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कौन हैं रामनाथ कोविंद और क्या योगदान रहा उनका देश की राजनीति मे
रामनाथ कोविंद का जन्म अक्टूबर 1945 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात मे हुआ था और उनकी शिक्षा कानपुर युनिवर्सिटी से हुई जहां उन्होने बीकॉम और एल एल बी का पढ़ाई कम्पलिट किया और उसके बाद 1971में उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मे 16 सालों तक प्रैक्टिस की इसी बीच 1977 से 1979 तक केंद्र सरकार के वकील भी रहे और उसके बाद 1980 से 93 तक केन्द्र सरकार के स्टैंडिग काउंसिल मे थे ।
1994 मे कोविंद उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के लिए सांसद चुने गए और 12 सालों तक राज्य सभा के सांसद रहे । इसके बाद उन्हें आदिवासी , होम अफेयर , पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस , सामाजिक न्याय , कानून न्याय व्यवस्था जैसे संसदीय समीतीयों का सदस्य बनाया गया और साथ ही राज्य सभा समिती के चेयरमैन भी रहे और फिलहाल कोविंद बिहार के राज्यपाल है ।
विपक्षीयों का कहना है कि बीजेपी ने कोविंद को राष्ट्रपत्ति का उम्मीदवार इस लिए घोषित किया है क्योंकि कोविंद एक दलित नेता हैं और उनके दलित होने का फायदा बीजेपी दलित वोट बैंक को अपनी ओर खीचने में करना चाहती है और बिहार मे मिली हार को अगले लोकसभा चुनाव मे दलीत वोट को अपनी ओर खिंच कर जीत दर्ज करना चाहती है हांलाकि कुछ विपक्षी दलों ने इस नाम पर सहमती भी दे दी है ।
दलित वोट बैंक पर बीजेपी की नज़र
मै मानता हु अगर वाकई मे बीजेपी कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार महज इस लिए बनाना चाहती है ताकि दलित वोट बीजेपी के खेमे मे आ जाए ,तो यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि एक तरफ तो बीजेपी कहती है “सबका साथ सबका विकास” और अगर सबका साथ और सबका विकास का यही तरीका है तो इस तरीके को बदलना चाहिए क्योंकि इस तरीके से तो सिर्फ बीजेपी को ही फायदा हो सकता है देश को नही । और जो नेता या पार्टी इस बूनीयाद पर देश को विभक्त करना चाहती है तो नहीं चाहिए ऐसे नेता और पार्टी …!