अपने समय का एक औसत ऑलराउंडर जो आज टीम इंडिया का कोच बना है
आज से तीन चार दशक पहले 6 फुट 3 इंच का एक लंबा छरहरा ,सुडौल शरीर वाला नौजवान जब अप-राइट स्टांस के साथ बैटिंग करता था तो उसके पास तेज गेंदबाजों को खेलने के लिए शॉट्स की संख्या सीमित थी|लेफ्ट आर्म स्पिनर की हैसियत से टीम में आनेवाले चिकनी कद-काठी के उस इंसान नें आगे चलकर अपने कैरियर में पहले नंबर से लेकर 11वें नंबर तक बैटिंग की|कभी विश्वविजयी कप्तान कपिल देव ने उसके बारे में कहा था ‘कि उसके पास प्रतिभा नहीं है, वो जो कुछ है, अपने लगन और समर्पण की बदौलत है’|आज वह क्रिकेट की दुनिया का एक जगमगाता हुआ नाम है|
2011 विश्वकप का फाइनल, नुवान कुलशेखरा की गेंद बिल्कुल ओभरपिच, धोनी नें अपने ‘सात लीटर’ दूध वाले शरीर का सारा ताकत झोंककर गेंद को मिडविकेट से ऊपर से उड़ा दिया… उसी समय कमेंट्री बॉक्स से एक कमेंटेटर बोलता है ‘धोनी फिनिशेज ऑफ इन स्टाइल’.. और पूरा भारत खुशी से झूम जाता है|
आज उसी कमेंटेटर को भारतीय क्रिकेट टीम का मुख्य कोच बनाया गया है….. नाम.. वन एंड ओनली.. द रवि शास्त्री | चाहे आप उनकी लाख आलोचना कर लो, कभी इग्नोर नहीं कर सकते|’रविशंकर जयाद्रथा शास्त्री’ शॉर्ट में बोले तो रवि शास्त्री… 27 मई 1962 को जन्म लिया और अपने स्कूल लाइफ में डॉन बॉस्को स्कूल, माटुंगा को पहली बार ‘जाइल्स शील्ड’ चैंपियन बनाकर बता दिया कि वे लंबी रेस के घोड़े हैं|
जिस मुंबई टीम से खेलना लोगों का सपना होता था, मात्र 17 साल 292दिन की उम्र में रवि ने यह कारनामा कर दिया|आरए पोद्दार कॉलेज के आखिरी साल में जब रणजी में जगह मिली तो वे मुंबई की ओर से खेलने वाले सबसे युवा क्रिकेटर थे|1979-80 का फाइनल था, शास्त्री नें 6-61 की बॉलिंग की, मुंबई हार गई फिर भी रवि नें दिल जीता|
अगले सीजन में जब यूपी के खिलाफ खेल रहे थे, तभी नेंशनल टीम कॉलअप आ गया|टीम के मुख्य लेफ्ट आर्म स्पिनर दिलीप देशी चोटिल थे, और शास्त्री को उनके स्टैंड बाई के तौर पर न्यूजीलैंड जाना था|अपने कैरियर के पहले हीं ओवर में उन्होनें कीवी कैप्टन ज्योफ ग्रिफीथ को मेडम ओवर खेलाया और दूसरी पारी में चार गेंद में 3 विकेट लिया|
तीसरे टेस्ट में सात विकेट नें उन्हे पहला मैन ऑफ द मैच अवार्ड दिलवाया|10वें नंबर पर बैटिंग करने वाले शास्त्री को पहले नंबर तक आने में केवल 18 महीने लगे|उनकी पहली सीरीज के बाद विजडन ने लिखा था ‘एक शांत, संयमित और सूझबूझ वाला क्रिकेटर, एक कीमती ऑलराउंडर, और फील्डिंग की अमूल्य संपत्ति’….. तरकश में बहुत सारे तीर नहीं थे, पेसर्स को खेलने में दिक्कत आती थी लेकिन स्पिनर पर तो ऐसे टूटते थे मानों भूखे पेट कबाब मिला हो|
पैड पर की गेंद को क्लिक करने वाले उनके शॉट को चपाती शॉट कहा जाता था, लेकिन उनके स्लो बैटिंग की काफी आलोचना होती थी, जरूरत पड़ने पर चार के गियर में गाड़ी दौड़ाना भी जानते थे|हालांकि घरेलू क्रिकेट में बड़ौदा के स्पिनर तिलक राज की 6गेंद पर 6छक्के नें उनके आक्रामक अंदाज से लोगो का परिचय कराया|इसी पारी में उन्होने फर्स्टक्लास क्रिकेट का सबसे तेज दोहरा शतक लगाया| हेटर्स बगलें झाँकने लगे और शास्त्री गैरी सोबर्स के जमात में शामिल हो गए|
आगे चलकर बैटिंग पर ध्यान देते देते गेंदबाजी करना हीं भूल गए|1983 विश्वकपविजेता टीम के मेंबर होने के बावजूद उन्हे गिने चुने मैच हीं खेलने को मिले|1985 में ऑस्ट्रेलिया में धांसू प्रदर्शन किया जिसके कारण उन्हे ‘चैंपियन ऑफ द चैंपियंस’ का अवार्ड मिला|शास्त्री में कप्तान बनने के हरेक गुण थे लेकिन चोट नें उन्हे सिर्फ एक मैच में भारत की कप्तानी करने दी|काउंटी क्रिकेट में लगभग चार साल ग्लेमोर्गन को अपनी सेवाएँ दी|
1990 के दौरे पर ओवल के मैदान पर कुतुब मीनार सरीखे शास्त्री नें 187 रन बनाए, इंग्लैंड के आक्रमण को 9 घंटे 21 मिनट तक अपने विकेट से दूर रखा| चेहरे में ऐसा आकर्षण की, धमेंद्र अमिताभ के युग में लड़कियाँ उनपर जान छिड़कती थी|1990 में रीतू सिंह के साथ विवाह के बंधन में बँध गए| चोट से लगातार जूझते रहे, 1992 में जब उनकी उम्र 32 भी नहीं हुई थी, घुटने की चोट से तंग आकर सन्यास का ऐलान कर दिया|
80 टेस्ट में 3830 रन बनाए और 151 विकेट लिए जबकि 150वनडे में 129 विकेट लिए और 3108 रन बनाए|1994 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट को भी अलविदा कह दिया| फिर शुरू की कमेंटेटर के रूप में अपनी पारी और उसके बाद क्रिकेट कमेंट्री के दुनिया में रवि शास्त्री हमेशा चमक रहा है|
पहले ईएसपीएन स्टार स्पोर्ट्स के लिए, फिर बीसीसीआई और आईसीसी को अपनी सेवाएँ देते रहे|बीसीसीआई के कमेंट्री पैनल में रवि शास्त्री और सुनील गावस्कर के नाम की तूती बोलती उस समय भी बोलती थी, अब भी बोलती है|2008 में आईपीएल शुरू होते हीं दोनों सोनी नेटवर्क से जुड़े|आजकल लगभग हर टूर्नामेंट में प्रेजेंटर और कमेंटेटर की भूमिका निभाते रहते हैं|
इतिहास बताता है, जब भी भारतीय टीम संकट में रही है.. रवि शास्त्री वह शख्स है जो हमेशा भारतीय क्रिकेट और बीसीसीआई के साथ रहा है| 2007 में वर्ल्डकप के पहले राउंड में बाहर होने के बाद जब ग्रेग चैपल को टीम के कोच से हटाया गया था तब बांग्लादेश दौरे पर शास्त्री नें हीं कोचिंग कराई थी| 2014 में जब डंकन फ्लेचर को खराब प्रदर्शन के कारण हटा दिया गया, तब रवि शास्त्री दो साल तक टीम डायरेक्टर रहे|
उनके मार्गदर्शन में टीम नें टेस्ट में नंबर 7 से नंबर दो का रास्ता तय किया, श्रीलंका को उसके घर में टेस्ट सीरीज हराया… साउथ अफ्रीका को 3-0 से टेस्ट हराकर भेजा… वनडे विश्वकप 2015 और टी20 विश्वकप 2016 के सेमीफाइनल में पहुँचाया|इतने अच्छे रिकॉर्ड के बावजूद जब जून 2016 में कोच चयन हुआ तो शास्त्री पर कुंबले को तरजीह दिया गया|
इस बात से गहरा धक्का लगा और फ्रस्ट्रेटेड शास्त्री नें चयन करने वाली कमेटी की आलोचना कर दी जिसमें गांगुली, सचिन और लक्ष्मण थें|आज उसी ‘सीएसी’ नें शास्त्री पर भरोसा दिखाया है, लेकिन उन्हे कोच बनाने में विराट कोहली का पूरा योगदान है|अब जबकि विराट को अपना मनपसंद कोच मिल गया है, टीम के प्रदर्शन की जिम्मेदारी इन दोनों के कंधे पर होगी|
रवि शास्त्री नें इस रेस में जिन्हे पछाड़ा है, उनमें सहवाग, टॉम मूडी,रिचर्ड पायबास और लालचंद राजपूत जैसे दिग्गज थे|मैन मैनेजमेंट की स्किल के धनी रवि शास्त्री का चयन लगभग तय माना जा रहा था| फिर सवाल यह कि इतना बड़ा ड्रामा क्यों… जहाँ हर सप्ताह तीन चार ड्रामेटिक फिल्में निकलती हो वहाँ बीसीसीआई को अपना सिक्वेंस रचने की जरूरत क्या थी|क्रिकेटप्रेमियों को बोर्ड नें जबर्दस्त उल्लू बनाया लेकिन देखना है कि ये भारतीय क्रिकेट का कितना भला करती है|
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