कविता: माहवारी
कभी सोचा है वह कितना दर्द सहती है, फिर भी कुछ नहीं कहती है, बस सब की सुनती रहती है,
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कभी सोचा है वह कितना दर्द सहती है, फिर भी कुछ नहीं कहती है, बस सब की सुनती रहती है,
Read moreकरे त्राहि-त्राहि दुनिया सारी, कारण जिसका एक बीमारी। सो सबकी जिनको जान प्यारी, वो न लांघे चारदीवारी। समय भले ही
Read moreक्यों तू इतना इम्तिहान लेती है आखिर तुझको क्या चाहिए जिंदगी! एक पल की खुशी फिर दर्दों-गम क्यों तू इतना
Read moreचंद्रशेखर, बिस्मिल, भगत सिंह को पढ़ते आएं हमबताओ एक पल में ऐसे कैसे यूँ ही हार जाएं हम!वक़्त के हालात
Read moreहिन्दुस्तां में क्या यह नया हैमज़हबी रंग रगों में जो घुल सा गया है।लकीरें सियासी जो खींची गईं हैं,छुपाते हुए
Read moreतेरी रूह में उतर कर मैं एक कहानी लिखता हूँ । प्यार के अल्फाज़ो से सजाए मैं तेरी नादानी लिखता
Read moreतुम बहुत हसीन हो ऐ कविता जो जज्बातों को जगती हो । वर्षों से धूमिल पड़ी यादों को शब्दो में
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